Thursday, August 1, 2013

टपकती छतें !


आज सुबह , बारिश में छत से टपकते हुए  पानी को देख कर सोचा - " क्या ज़िन्दगी है साली, ये बारिश के मौसम में पूरा घर सीलन से भरा है… कोई कैसे रहे इसमें?" , ये सोचते हुए  मैंने नाश्ते की प्लेट उठाई और घर के एक सूखे, गर्म और आरामदेह कोने में बैठ गया !
अख़बार  पर नज़र गयी , चाय की चुस्कियां लेते हुए मैंने अख़बार पढना शुरू किया !

पहले पन्ने पे खबर थी - "घोर प्रताड़ना देकर मारा था कैप्टेन सौरभ कालिया को : पाकिस्तानी फौजी ने कुबूल की अपनी नापाक हरकत "! जिनको नहीं पता उन्हें  बता दूँ  की कप्तान सौरभ कालिया कारगिल युद्ध के दौरान पाकिस्तानी फौज द्वारा क़ैद कर लिए  थे जब वो बॉर्डर पट्रोल पर थे। उन्हें और उनके साथियो को अमानवीय यातनाये देकर मौत की घाट उतारा था पाक फौजियों ने।
तो किसी पाक फौजी ने ये बात एक विडियो में कुबूल की और वो विडियो youtube  पर पाया गया है।
मैंने आगे पढ़ना जारी रखा, किस तरह से कप्तान कालिया और उनके साथियो को यातनाये दी गयी और मारा
गया , सब वर्णन था।
मुझसे अगला निवाला निगला न गया , दिल गुस्से से भर आया और आँखों में गर्म आंसू थे।
घर का कोई कोना अब आरामदेह नहीं लगता था !
एक बार फिर लगा -"क्या ज़िन्दगी है साली " , हर जगह सीलन है , हम सील चुके हैं और ये देश भी !
दिल्ली के सरकारी बंगलो में भी  लोग होंगे जो ये पढ़ रहे होंगे और उनके गले से निवाले उतर रहे हैं , कैसे ?
और ऐसे अपने दिल का बोझ 'दिल्ली वालो' पर डाल कर मैंने अपनी ज़िम्मेदारी पूरी कर दी , रही सही कसर ये लेख लिख कर पूरी हो गयी !
देशभक्ति अखबार की पंक्तियों में रह गयी , शहीद अपना नाम और एक सवाल छोड गए और मैं शायद फेसबुक पर अपना फ़र्ज़ निभा दूंगा क्यूंकि ऑफिस भी तो जाना है !
मैं अपने असहाय जीवन में फिर वापिस आ गया, कैप्टेन कालिया और उनके साथियो को सलाम किया और नाश्ता ख़त्म करके सोचने लगा कि छत पर प्लास्टर करने का वक़्त आ गया है !

पता नहीं , क्या ये देश ऐसा इसलिए है क्यूंकि मैं ऐसा हूँ या फिर मैं ऐसा हूँ क्यूंकि ये देश ऐसा है ?